कविताएं

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दिनचर्या--------------जैसेहवा,पानी,खाना जरूरी हैऐसे ही जरूरत बन गया हैअखबारइसके बिनारहा नही जाातासुबह उठते हीगेट की तरफ नज़रे टिकी रहती हैंअखबार वाले के इन्तजार मेजब तक अखबार नही आतामन बेचैन रहता हैअगर अखबार आने मेजरा भी देर.हो जाये,तो मन मे अनेक प्रश्न उठने लगतेे हैअखबार आयेगा या नही?अखबार वाला कंही बाहर, तोनही चला गया?कंही वह बीमार,तोनही पड़ गया?सारी आशंकाए निर्मूल साबित होती है।चाहे देर भले हो जाये,अखबार की नागा नही होती।अखबार आते ही,जैसेकुत्ता रोटी पर याबिल्ली दूध परवैसे ही,मैं अखबार परजब तक उसे पूरा चाट नही लूंभूख शांत नही होती।अखबार पढ़ने के बाद,अपने कोहल्का महसूस करता हूँसाल में चार दिनहोली,दीवाली,स्वतन्त्रता दिवस