अकेलापन

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वह अलसाया सा बिस्तर पर लेटा था! नींद तो उसकी सुबह ही चिड़ियों की चहचहाट से कब की खुल चुकी थी! दूर पहाड़ियों के पीछे उगते सूरज की किरणे खिड़की से छन कर उस तक पहुंच रही थी! जैसे उस से कह रही हों "उठो सुबह हो गई! कब तक यूँ ही लेटे रहोगे!" और वह उन किरणों को जवाब देता "क्या करूंगा उठकर! मेरा कोनसा कारोबार ठप्प हो रहा हैं!" इधर कुछ दिनों से वह अपने आस पास मौजूद मूक सजीव और निर्जीव चीजों से मन ही मन बातें करने लगा था! कभी वह पेड़ों से बतियाता! कभी पार्क