उजाले की ओर ---संस्मरण - मैं कहाँ कवि हूँ ?(SANSMARAN)

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मैं कहाँ कवि हूँ ? --------------------- उम्र के ऊपर-नीचे गुज़रते मोड़ों पर कब ? किसने ?रोक लगा दी है साहब ! वो तो बस जैसे समय आता है ,गुज़र ही तो जाती है न कोई पता,न ठिकाना --बस जो ,जैसा आए उसमें से गुज़रते रहना अक़्सर सोचा हुआ होता कहाँ है इंसान का ,बस उसे उस रास्ते से गुज़र जाना ही होता है जो उसके सामने आता है विवाह के चौदह वर्ष बाद दुबारा पढ़ने का भूत सवार हुआ दो छोटे बच्चों व घर-गृहस्थी के साथ पढ़ने का एक अलग ही अनुभव !