कुदरत से पंगा

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‘कुदरत से पंगा'देवाशीष उपाध्याय ‘कितने आदमी थे, छोटे?’ कोरोना सरदार ने अपने सिपहसालार से पूछा।‘सरदार, बाहर तो कोई आदमी नहीं दिखाई दे रहा था! सब डरपोक हैं, हमारे खौंफ से दुबकर घरों में छुपे हैं। सड़कों पे तो मातम सा सन्नाटा पसरा है। केवल पुलिस और एम्बुलेंस ही दिखाई दे रहे थे।’‘वाह! तुम लोगों ने तो इंसानों को घरों मे कैद होने को मजबूर कर दिया है। अरे तुम लोगों ने इंसानों को ललकारा नहीं, क्या? ये तो बहुत काबिल बनते फिरते हैं। उन्होंने पूरी धरती पर आंतक मचा रखा है। अपने स्वार्थ के लिए पूरे