बोतल-पुड़िया संवाद

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एक मैली-कुचैली सी किराने की दुकान के बिना शीशा लगे शोकेस के एक कोने में टाट के टुकड़े के नीचे विमला, रजनी, और अमरी दुबकी बैठी थी। ये सभी पान-मसाले और गुटके की पुड़ियाएं थीं।लॉक-डाउन के दूसरे फ़ेज के बाद भी इनका बाहर निकलना मना था। मिर्च, धनिएं, जीरे और हींग के बदबुयुक्त वातावरण में गंदे टाट के नीचे उनका दम घुट रहा था। दुकान का बूढ़ा मालिक हिक़ारत से शोकेस के उस कोने की तरफ़ नज़र डालता और फिर बाहर गली में देखने लगता कि कोई लेने वाला आ जाए तो औने-पौने दामों में उनको चलता करूँ।कहीं कोई राज