नई चेतना - 18

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धनिया को अधिक प्रयास नहीं करना पड़ा । बाबू उठ बैठा । धनिया बोली ” अब हमें देर नहीं करनी चाहिए बापू । देर हो गयी और किसीने देख लिया तो सब गड़बड़ हो जाएगी । मैंने सब सामान बाँध लिया है । आप हाथ मुँह धो लो । फिर चलें ।”बाबू शांत स्वर में धनिया का चेहरा देखते हुए बोल पड़ा ” तू किस मिटटी की बनी है बेटी ! ये तू कह रही है की हमें चलना है । ना बेटी ! तेरा दिल बड़ा होगा । तू कुरबानी दे सकती है लेकिन मैं तेरी आँखों में अपनी