बाबू वहाँ से तो बड़ी तेजी से चला था लेकिन कुछ ही दूर आकर उसकी गति शिथिल पड गयी। विचारों के अंधड़ थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे ।हालाँकि उसने मन बना लिया था कि अब उसे वही करना है जो लालाजी ने कहा है । लेकिन क्या यह इतना आसान है ? एक दो दिन में ही धनिया की शादी करनी है । कैसे करेगा ? यहाँ आसपास के गाँवों में करना होता तो शायद जानपहचान से कोई अच्छा लड़का मिल भी जाता । अब बिना किसी जान पहचान के धनिया को किसके गले में बाँध दे