जयगाथा ( महाभारत की कथाओं पर आधारित उपन्यास ) ॐ श्रीगणेशाय नमः । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । आद्यन्तमङ्गलंजातसमानभाव- मार्यं तमीशमजरामरमात्मदेवम् । पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं सम्भावये मनसि शङ्करमम्बिकेशम्॥ (महाशिवपुराण/विद्येश्वर संहिता १/१) वह आदि से अंत तक नित्य तथा सदा ही मंगलमय हैं, जिनकी कोई भी समानता या तुलना अन्यत्र कहीं भी नहीं की जा सकती है, जो आत्मा के स्वरुप को प्रकाशमान करने वाले परमात्मा हैं, वह अपने पञ्चमुख से विनोद में ही पञ्च प्रबल कर्म-कृत्यों-सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव एवं अनुग्रह करने वाले हैं । ऐसे ही अनादि परमपिता परमेश्वर अम्बिकापति भगवान शिव-शंकर का मैं पुनः-पुनःमन ही मन