जिसने हर संभव यत्न किये, भारत आजाद कराने के।जो अधिकारी अमृत का था,विष उसे मिला पी जाने को।।अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु,रखता था जान हथेली पर।शिव के समान रणधीर वीर, पाया था नाम चन्द्रशेखर।।आजाद उसे उपनाम मिला,शेेरोंं जैसे थे उसके काम।बस उसकी अमर शहादत से,प्रयाग बन गया तीर्थ धाम।।गेंहुआ रंग, मंझला कद था, नहीं काल से डरा जो वीर।नतमस्तक थे उसके आगे, लंदन के सारे शूरवीर।।बाल्य काल में प्रण ले डाला, था उसे निभाया जीवन भर।अपने थे प्राण लुुटा डाले, आजादी की बलि वेदी पर।।आजाद रहा था जीवन भर, था आजादी की मौत मरा।ऐसे सपूत को पाकर थी,हो गई धन्य