ख्यालों का बगीचा

  • 3.7k
  • 1.8k

काव्य संग्रह "ख्यालों का बगीचा" भूमिका "साहित्य समाज का दर्पण होता है।''यह कहावत तभी तक सार्थक है, जब तक साहित्य समाज को आईना दिखाने का काम करे। साहित्य समाज की अनेकों कुरूतियों, विसंगतियों एवं समस्याओं को उजागर करके उसको दूर करने के काम आता है। ठीक उसी तरह प्रस्तुत कविताओं में समाज की अनेकानेक बुराइयों पर प्रहार किया गया है। लेखिका ने सर्वप्रथम कन्हैया से सद्बुद्धि, तेज, प्रताप,हिम्मत,जूनून, साहस और धीरज आदि गुणों को प्रदान करने की याचना की है। और फ़िर एक से एक गंभीर मसलों जैसे-भ्रूण हत्या आखिर कब तक?,वैश्या स्वयं दोषी या समाज?,छुआछूत,भेदभाव आदि पर करारा प्रहार