फिरोजी रेखाओं के नीड़ प्रेम हमेशा स्थिर नहीं रहता। यह चंद्रमाओं की कलाओं की तरह घटता रहता है...बढ़ता रहता है। ‘‘ बादल, वो देखो दूर क्षितिज पर झुका जा रहा है पीला आसमां....धरती को आलिंगनबद्ध कर लेने को आतुर...‘‘ -सांवली शेफाली ने आषाढ़ के बादलों को धीमे-धीमे नीचे उतरते देखा तो मुग्ध हो गई। मगर बादल कहीं नेपथ्य में खोया अपने में ही डूबा हुआ था- ‘‘शेफाली, वो देखो दूर एक पंछी दम तोड़ रहा है फट फट फट फट करता हुआ। बंदूकें नाच रहीं हैं। भूखे नग्न बच्चे कलप रहे हैं।...वो देखो धुंएं से अटा पड़ा नीला आकाश कलछऊँ