मुमताज़

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मुमताज “सादिक”......मालिशवाली बाई मुमताज़ की बारीक और तीखी-सी आवाज़ ओटले के खुले हुए दरवाज़े पर गूँजी । उस आवाज़ को सुनते ही बगीचे की नर्म धूप में अपने पालने में लेटा पाँच महीने का सात्विक खिलखिला कर हाथ-पाँव उछालने लगा । इतने छोटे बच्चे भले ही बोल नहीं पाते, चल नहीं पाते लेकिन वे खूब समझते हैं दुलारने-पुचकारने वाली आवाज़ों को, पहचानते हैं चेहरों को, यहाँ तक कि हाथों के स्पर्श भी उनके लिए अपने-पराये होते हैं । अपनी परिचित आवाज़ों को सुनकर वे मुस्कराते हैं, खिलखिलाते हैं और सुरक्षित लगती गोदों में रोते नहीं, सुकून से सिमट जाते हैं ।