तस्वीर में अवांछित - 3 - अंतिम भाग

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तस्वीर में अवांछित (कहानी - पंकज सुबीर) (3) लड़की ने जो टीवी पर फिल्म देख रही थी अंदर जाकर कुछ सामान ज़ोर से पटका और फिर किसी खिड़की या शायद दरवाज़े को ज़ोर से लगाया। सारी की सारी आवाज़ें रंजन तक पहुंचीं, ज़ाहिर सी बात है पहुंचाने के लिए की गईं थीं तो पहुंचेगी ही। अंदर कुछ देर तक अंसतोष अपने आपको विभिन्न ध्वनियों के माध्यम से व्यक्त करता रहा, फिर जैसी की असंतोष की प्रवृति होती है वह धीरे धीरे कम होता हुआ समाप्त हो गया। असंतुष्ट होना सबसे अस्थायी गुण है। कई बार तो समय के साथ हम