स्वयंसिद्धा सुखिया का पोर पोर आज बुरी तरह से दुख रहा था। रोम रोम में असहनीय दर्द की टीस उठ रही थी और वह सोच रही थी, यह मैंने क्या कर डाला। बिना सोचे समझे बिरजू जैसे लड़के से शादी कर ली। वह अभी तक रह-रहकर सुबक रही थी। स्पष्टता से सोच नहीं पा रही थी कि जिंदगी के इस कठिन मुकाम पर जब उसके लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं, वह क्या करे। तभी उसे स्कूल की अपनी प्रिय शिक्षिका रौशनी जी के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे, "लाख मुश्किलें आएं, इंसान को अपने लक्ष्य से