उदासियों का वसंत - 1

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उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ (1) वे चले जा रहे थे। श्लथ पाँव। छोटी-सी मूठवाली काले रंग की छड़ी के सहारे। यह छड़ी कुछ ही दिनों पहले, ......कल ही, उनकी ज़िन्दगी में जबरन शामिल हुई थी, .....बिन्नी की ज़िद पर। वे छड़ी ख़रीदने के पक्ष में नहीं थे। किसी के सहारे, चाहे वह कोई निर्जीव वस्तु ही क्यों न हो, चलना उन्हें प्रिय नहीं। पर भला बिन्नी कहाँ माननेवाली! ज़िद पर अड़ जाती है तो एक नही सुनती। तमाम तर्क, .....‘‘आपको अभी ज़रूरत है। ......छड़ी लेकर चलने से कोई बूढ़ा थोडे़ ही हो जाता है, ......अभी आपको चलते हुए सतर्क