थप्पड़ - बस इतनी सी बात

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एक ऑरेंज कैंडी का मज़ा लेते फ़िल्म के किरदारों के संग मस्ती से शुरू हुई और न जाने कहाँ-कहाँ घूम आई फ़िल्म थप्पड़ । "बस एक थप्पड़ ही तो था । क्या करूँ ? हो गया न ।"इस क्या करूँ की गूँज सुनाई देती सहज, स्वाभाविक पुरुषात्मक मानसिकता वाले समाज का दर्पण है थप्पड़। ये कहानी है एक 13 साल की प्यारी सी बच्ची की, जिसे अपनी माँ की दूसरी शादी करवानी है क्योंकि उसके पिता का देहांत हो गया है। ये कहानी है एक घर में काम करने वाली बातूनी बाई की जिसे उसका पति बात-बेबात पीटता है और यहीं इतिश्री नहीं