लकवा

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रीमा भौचक्की सी रिक्शा में बैठी थी| आँखे देख तो सामने रहीं थी, लेकिन उन्हें दिखाई कुछ और ही दे रहा था| शहर के सबसे व्यस्त बाजारों में से एक की एक गली में है उसका घर| गली से बाहर आते ही एक अजीब सा कोलाहल घेर लेता है| वाहनों का और इंसानों का शोर, साईकिल रिक्शाओं की घंटियाँ, जिनकी रिक्शा में घंटियाँ नहीं, उनकी: हटना बाऊ जी, हटना भैंजी, ओ बच्चे! बचके भाई आदि आदि की मोटी, भारी, खुरदुरी हर तरह की आवाजें, रेहड़ी वालो की पुकारें| कितनी भी बड़ी दुकान हो जब तक सड़क का दो-चार फुट हिस्सा कब्जिया कर सामान न रखा