मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 17

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मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन कहानी 17 लेखिका: शुचिता मीतल उसकी बातें उसने मोबाइल पर टाइम देखा। सवा तीन। तीन बजे का सिंड्रोम। रोज़ाना रात को तक़रीबन इसी वक़्त उसकी आंख खुल जाती है। फिर चार-पांच बजे तक करवटें बदलती, टहलती, कभी सोती-कभी जगती, फिर जो सोती है तो आठ बजे से पहले नहीं उठती। हां, आजकल लॉकडाउन में जल्दी उठना पड़ता है। सुबह को दो-तीन घंटे ही गेट खुलता है, तो दूध वग़ैरा लाने जाना पड़ता है। उसका ध्यान खिड़की से आती कुछ अलग रुहानी सी रोशनी पर गया। उसने उठकर परदा हटाकर झांका। खिड़की के पार दूर आसमान के माथे