ज़िन्दगी कुछ और ही होती...

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ज़िन्दगी कुछ और ही होती... मध्य दिसम्बर की एक संध्या। सूर्य क्षितिज के पश्चिमी छोर पर बड़े से वृताकार में नीचे की ओर तेजी से जाता हुआ। शहर का मशहूर पार्क जहां शहर के हर भाग से लोग घूमने-फिरने के लिये आते हैं। पार्क में प्रौढ़ तथा बुजुर्ग बैंचों पर बैठे हैं या टहल रहे हैं। बच्चे खेल रहे हैं, मस्ती कर रहे हैं। एक बैंच पर एक पुरुष और एक स्त्री थोड़ी दूरी रखकर बैठे हुए हैं। उनके चेहरों से लगता है कि वे पति-पत्नी भी हो सकते हैं, जिनके बीच आपसी सौहार्द का स्थान क्षणिक मनमुटाव ने ले