कई बार जब कभी हम लिखने बैठते हैं तो अमूमन ये सोच के लिखने बैठते हैं कि हमें आरंभ कहाँ से करना है और किस मोड़ पर ले जा कर हमें अपनी कहानी या उपन्यास का अंत करना है मगर कई बार ऐसा होता है कि बिना सोचे हम लिखना प्रारंभ तो कर देते हैं लेकिन हमें अपनी रचना की मंज़िल..उसके अंत का पता नहीं होता। ऐसी मनोस्तिथि में हम अपनी कथा को जहाँ..जिस ओर सहजता से वह खुद ले जाए के हिसाब से, उसे बहने देते हैं। खुद रजनी मोरवाल जी का भी मानना है कि बिना किसी अतिरिक्त