परित्यक्त “माँ....मुझे कुछ पैसे चाहिये.” सारांश की आवाज पौष माह का पाला मारी सी है, ठंडी से जकड़ी और ठिठुरती सी. “फिर से? अभी महीना पहले ही तो तुम्हारे अकाउंट में दस हजार ट्रांसफर ....” लेकिन लेपटॉप पर झुकी अंजलि आगे बोलने के पहले ही अटक गई, कि उसके भीतर बैठी माँ ने सारांश की आवाज को पकड लिया था. ‘हाय राम, ये मेरा लाल है, मेरा बिगड़ा शहजादा आज ऐसे कैसे स्याणा बच्चा हो गया.. इम्पॉसिबल, जरूर कहीं कुछ गड़बड़ कर के आये हैं बेटे जी,’ अंजलि के भीतर बैठी नरम माँ अब भुक्तभोगी, चतुर माँ में बदलने लगी.