दम-दमड़ी

  • 6.5k
  • 1.9k

दम-दमड़ी रेलवे लाइन के किनारे बप्पा हमें पिछले साल लाए थे. “उधर गुमटी का भाड़ा कम है,” लगातार बिगड़ रही माँ की हालत से बप्पा के कारोबार ने टहोका खाया था, “बस, एक ख़राबी है. रेल बहुत पास से गुजरती है.” लेकिन रेल को लेकर माँ परेशान न हुई थीं. उलटे रेल को देखकर मानो ज़िन्दग़ी के दायरे में लौट आई रहीं. बहरेपन के बावजूद हर रेलगाड़ी की आवाज़ उन्हें साफ़ सुनाई दे जाती और वह कुछ भी क्यों न कर रही होतीं, रेल के गुज़रने पर सब भूल-भूला कर एकटक खड़ी हो जातीं- छत पर, खिड़की पर, दरवाज़े पर.