जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 30. अज्ञात से मुलाकात रात का खाना बन चुका है, मैं विनीता के फ्री होकर लौटने की राह देख रहा हूं। हालांकि मुझे पूरा भरोसा नहीं कि मेरी बात को वह कितनी गंभीरता से लेगी? कहीं वह मेरी हंसी ही न उड़ाने लगे, आखिर मैं भी तो उसके पूजा-पाठ को लेकर कभी गंभीर नहीं रहा। खाना बनाकर विनीता अपने मंदिर में संध्या-पूजन के लिए चली गई है। यानी करीब आधा घंटा गया। मैं व्यग्र हो रहा हूं उससे बात करने को, मगर उसका रूटीन पूरा हो तब न! दीप जलाकर उसने पूरे घर में घुमा दिया