अँधेरे का गणित (कहानी पंकज सुबीर) (1) मुँबई जैसे महानगर में जहाँ लोकल ट्रेनें सुबह, दोपहर, शामें अपनी पीठ पर ढोती हैं। वो भला क्या कर रहा है? आईना उससे झूठ बोलता है या सच, कुछ पता नहीं पर आईना प्यास को बुझा नहीं पाता है। गोरे गाँव पश्चिम में शास्त्री नगर के जिस फ़्लैट में वो अपनी प्यास की चिंगारियों के साथ रात गुज़ारता है, वहाँ कुछ भी ऐसा नहीं है जो ख़ालीपन के अँधेरे में समा जाए। मुंबई में काम करने वालों के लिए सुबह से शाम तक तो कुछ भी अपना नहीं है, बस एक रात होती