होने से न होने तक 7. शाम को मैंने आण्टी को फोन किया था। अपनी नौकरी लगने की बात बतायी थी। आण्टी ने आश्चर्य से दोहराया था,‘‘चन्द्रा सहाय कालेज के डिग्री सैक्शन में ?’’ ‘‘जी आण्टी।’’ उनकी आवाज़ में ख़ुशी झलकने लगी थी,‘‘मैं तुम्हारे लिए बहुत ख़ुश हूं बेटा। वेरी प्राउड आफ यू आलसो।’’ उनकी ख़ुशी, उनके उद्गार एकदम सच्चे और स्वभाविक लगे थे। ‘‘आपके कारण आण्टी,’’ मैंने भी सच्चे मन से उनके प्रति अपना आभार व्यक्त किया था। आज मैं यह बात अच्छी तरह से समझ गई थी कि एजूकेशन एकेडमी के प्रंबधक को सब से अधिक मेरी अच्छी