कूचाए नीमकश दरख़्त के सुर्ख पत्ते अचानक आये हवा के झोंके से गिरते हैं । धीमे धीमे तैरते लहराते, एक के बाद एक । सब जो खड़े हैं, फ़र्रूखज़ाद, नुसरा बी, हमदू, कुबरा, हुमरा, अफ़सान, रसूल बद्द्रूदीन, छोटे छोटे बच्चे, बुज़ुर्ग, बूढ़ी ख़वातीनें, सब तस्वीर खिंचवाने की संजीदगी में शक्लों को गंभीर दुरुस्तगी में सजाये, अचानक बालों पर, टोपियों और स्कार्फों पर गिरते पत्तों की छुअन के अहसास में मुस्कुरा पड़ते हैं । कुछ अचकचा कर ऊपर देखते हैं । उस एक लम्हे की हँसी के बाद फिर समेट लेते हैं अपने आप को, देखते हैं कैमरे की तरफ संजीदगी