बहीखाता - 37

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 37 जन्मदिन कभी-कभी कुछ दिन खुशी में भी बीत जाते। हम किसी तरफ घूमने निकल जाते। कोई बढ़िया किताब पढ़ते तो सार्थक बातें भी होतीं, पर बहस के अंत में इनकी दलील को ही सही माना जाता था। अमनदीप के घर बेटे का जन्म हुआ। चंदन साहब के घर पोता। अमनदीप से बच्चे की ख़बर सुनते ही चंदन साहब पोते को देखने के लिए जाने की तैयारी करने लगे। मुझे भी साथ जाना था। बहुत सारी लड़कियाँ देखने के बाद अमनदीप को इंडिया से एक लड़की सिम्मी पसंद आ गई थी।