जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 27. डर से पार जाने का अहसास जैसाकि संभावित था, कुछ देर में फोन बजा और मैं आदेश मुताबिक बाहर चला आया। आज मैं काफी संयत था और अपनी पेशी के लिए मानसिक रूप से तैयार भी था। आज मुझे जिस जगह ले जाया गया था, वह एक बड़ा हॉल था जिसे फोल्डिंग पार्टीशन से कई भागों में बांट रखा गया था। पांच-छह मेजों पर कई तरह के काम हो रहे थे। कहीं कागजों को अलग-अलग फाइलों में रखा जा रहा था तो कहीं कंप्यूटर पर किसी व्यक्ति का स्केच तैयार किया जा रहा था। हर