प्रेरणा

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मैं जब बूढ़े बैल(भाई) को याद करता हूँ तो उसकी गाड़ी में बैठने का चाव,गाड़ी में बैठने के बाद मन में हवाई जहाज में बैठने जैसे भाव और वो कागज की नाव मुझे आज भी याद आतीं हैं।बचपन लौटकर नहींआएगा,जिसमें खुशियाँ अपार थी।अरावली पर्वतश्रृंखला की तलहटी में बसा शेखावाटी अंचल का गांँव गौरीर मेरी जन्मभूमि है। जिससे मैं बेहद प्यार करता हूँ। जिसकी मिट्टी में धमाचौकड़ी करके मैं बड़ा हुआ हूँ।आज चाहे भले ही मैं देश की राजधानी में रहूँ लेकिन इस मिट्टी की सुगंध मुझे अनायास अपनी ओर खींच लेती है।मैं आज जो कुछ भी हूँ। उसने मेरे दादा-दादी,