सफर ...

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न जाने मैं कहाँ हूँ मुझे कुछ समझ नही आ रहा है शायद किसी बस या ट्रैन की खिड़की के निकट बैठी बाहर देख रही हूँ ट्रैन रफ्तार से भागी जा रही है शायद स्लीपर बर्थ का डब्बा है मैं किसी को जानती नही, पहचानती नहीं, इसलिए बस अपने आप में गुम चुपचाप बैठी ट्रैन के साथ भागते हुए रास्तों को देख रही हूँ। लोगों की भीड़ से डब्बा खचा खच भरा हुआ है। शोर इतना ज्यादा है कि किसी को किसी की कोई बात समझ नही आरही है। फिर भी सब लगा तार बोल रहे हैं। ना जाने क्या