लॉक डाउन

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इस जमीन से इश्क था मुझे,यह चहल-पहल की दुनिया लुभाती थी मुझे । पुरवइया के साथ आंचल उड़ाती थी मैं कभी ,फिर अपने मुख से उसे ओढ़ मुस्कुराती थी मैं कभी ।हर वक्त घर से बाहर रहना ,सारे शहर की गलियां नापते रहना ।नई नई जगहों की खोज करना ,सहेलियों के साथ हंसना और गप्पे लड़ाना ।आजाद पंछी जैसे नभ में पंख फैलाता है ,उस तरह मन मेरा चंचल आसमान में उड़ता रहता है ।कभी ना ठहरने वाला आज कुछ ठहर गया हैयह कैसा वक्त आया है ,कि सब कुछ थम गया है ।कहां गई यह शहर की रौनक