एक जुलूस के साथ – साथ नीला प्रसाद (3) मैं अगली क्लास में नहीं गई। पेड़ के तने से सटी खड़ी कुछ सोचने की कोशिश करती रही पर दिमाग शून्य था। सुजाता मुझे देख मुस्कुराई। ‘तुम उन लोगों में हो जो जिंदगी भर पानी के किनारे खड़े तैरने का आनंद लेने का दावा करते रहते हैं। जिंदगी में कभी तो समूह के लिए खतरा उठाना सीख! जिंदगी भर डर-डर कर, सामने दीख रही समस्याओं से मुंह छुपाती जियोगी क्या!’ कल रात सुजाता ने व्यंग्य में कहा था। विनीता ने सीधे निमंत्रण दे डाला- ‘तुम भी तो विक्टिम हो, आ जाओ