नई चेतना - 11

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धनिया अमर के कदमों से लिपटी बस रोये जा रही थी और अमर ! अमर की अवस्था तो उसे देखते ही पागलों सी हो गयी थी । उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह धनिया के मिल जाने की ख़ुशी मनाये या उसकी इस हालत पर आँसू बहाए ।अमर की मनोदशा से अंजान धनिया बस रोये जा रही थी । दोनों के लब खामोश पर निगाहें बोल रही थीं और पता नहीं दोनों कब तक ऐसे ही रहते कि बाबू की कड़क दार आवाज ने अमर को चौंकने पर मजबूर कर दिया ।अमर जो अभी भी बेसुध