वरा'ह [ सदियों पेहले सौराष्ट्र के कई राजपरीवार अपने नाम के आगे अपने इष्टदेव भगवान वराह का नाम जोड़ते थे : मगर समय के साथ वराह का अपभ्रंश होते-होते वै वराह की जगह पर रा’ लगाने लगे । जो आज तक हयात हैं । अध्याय १----- सूरज के ढलने के साथ ही रा’डियास का एक और दिन निराशा में बित गया । पाटण के रसाले को वापस गये आज लगभग हफ्ता भर हो चुका हैं मगर अभी तक उनकी ओर से कोई भी संदेश जुनागढ़ नहीं भिजवाया गया । लगता हैं कि महाराज दुर्लभसेन को रा’डियास का प्रस्ताव पसंद नहीं आया इसलिए शायद उन्होने बात को हवा में उड़ा दि होंगी ।हताश-नीराश रा’आज फिर