प्रथम नमन माँ शारदे,करो कंठ में वास ।कृपा-दृष्टि करो दीन पर,कर दो तम का नाश ।।है विघ्न- विनाशी,गणनायक,गौरीसुत मुझ पर दृृष्टि करो ।फूले ना फसल कभी तम की,ऐसी .प्रकाश की वृष्टि करो ।।वीरोचित वर्णन करने को,आओ काली का ध्यान करें ।निज मातृभूमि की मिट्टी का,प्राणों से बढ़कर मान करें ।।सम्पूर्ण जगत में यह धरती,कुछ अलग चित्र दर्शाती है ।जन्म हेतु मानव तो क्या,यह देवों को तरसाती है ।।भारत वीरों की धरती बन,दस दिशि में सुयश कमाता है ।है भरतभूमि को नमन मेरा,जो महापुरुष उपजाता है ।।कहलाती है जो आर्यभूमि,वीरों की खान भी हैं कहते ।लाखों संकट भी सहकर जो,निज आन-मान