श्रापित खज़ाना - 4

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उनके इशारे से दोनों अब चुप चाप आगे आगे और वह औरतें उनके गर्दन पर तलवार लगाकर उनके पीछे पीछे बिना बात किये पहाड़ो के मैदान से पहाड़ो की दिशा में चलने लगे थे ।अब सकुन यह था कि दोनों कम से कम मुर्दो के जंगल से बाहर थे और दुःख यह था कि अब ना जाने कैसे इन अजीबो गरीब इन सुंदर औरत सैनिक के बीच फसकर उनके पीछे चले जा रहे थे के जैसे मानो अब वह उनके इशारों पर चलने को मजबूर थे । रवी ओर करण को अब तक समझ आ गया था कि जगदीश ने उन्हें