2088 ईस्वी

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रोज की तरह आज भी जब दादाजी पार्क में आए तो इंतजार कर रही बच्चों की टोली ने उन्हे घेर लिया। सभी एक सुर में उनसे कहानी सुनाने की जिद करने लगे। मौहल्ले के सभी लोग जानते थे कि दादाजी बच्चों को अच्छी-अच्छी बातें बताते हैं। जिस कारण बच्चे इधर-उधर फालतू घूमते नहीं और शाम को सीधे घर आ जाते हैं। दादाजी भी एक अभिभावक की तरह उनको उनके घरों तक छोड़कर ही जाते थे, इस कारण पूरे मौहल्ले वाले उनका बड़ा सम्मान करते थे। बच्चों की स्कूली समस्याओं को भी अकसर उनके स्कूल जाकर हल कर देते थे। 85