नाम में क्या रखा है (1) “फलसफों को जरूरत नहीं किसी अफसाने की ये बात तो है बस दिल को जलाने की”.......कुछ ऐसा ही मेरा हाल है. ‘मैं कुछ नहीं से कुछ होने तक’ के सफ़र की अकेली कड़ी हूँ जो अपने अन्दर की कचोट से लडती है झगडती है लेकिन शिनाख्त करने की हिम्मत नहीं है शायद तभी तो असमंजस के जूतों में पाँव डाल डगमगाती चाल से हैरान परेशान हूँ. खुद को देखना एक प्रक्रिया भर नहीं है. ढूंढती हूँ अन्दर ठहरी बर्फ में आग के निशाँ जो पिघला सकें अपनी तपिश से बरसों से जमी बर्फ को.