अलफ़ाज़-ए-आवाज़

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ना फ़िक्र हैं ना फ़क्र हैं... !तन्हाइयों में तिरा ज़िक्र हैं... !!----------------------------------------वो गुज़रे ज़माने भी क्या याद आते हैं... !अब लोग मुझें मुड़ मुड़ कर देख चले जाते हैं... !!------------------वो शहर ए शाम रंगीन हुई आम ए खाश के लिए मचले हैं उदास दिल इश्क ए खाश के लिए --==-====मिरे शब्दों की आजमाइश सिर्फ इतनी सी हैं वो मचलते हैं रात दिन कलम और कागज के बीच.. !-============ये हसरतें निगाहों की पूरा हो जानें दो... !नज़रे ना फेरो मिरे इश्क़ को पूरा हो जानें दो... !!-------------------------चाह कर भी कोई मोहब्बत निभा नहीं पाता.. !चाह कर भी कोई रिश्ता बना नहीं पाता... !!चाह कर