दास्ताँ ए दर्द ! - 4

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दास्ताँ ए दर्द ! 4 कुछ देर बाद रवि भी मंदिर पहुँच गए और भजनों के सम्मिलित स्वर में अपना स्वर मिलाने की चेष्टा करने लगे | बेसुरे थे वो किन्तु तबले व हारमोनियम के मद्धम सुरों ने उन्हें अपने सुर में ढालने की चेष्टा की, भजन-मंडली के चयनित भजन सबको आते थे सो रवि के साथ तबले की थाप पर सबने उनका साथ दिया | सबका एक ही मक़सद था, आनंदानुभूति ! वो हो रही थी और क्या चाहिए? शायद उस दिन थोड़े समय में ही रवि का 'व्यापार' भी बहुत अच्छा हुआ था, उनके चेहरे पर लिखा था | होता ही है भई, आदमी