बस एक कदम... - 3 - अंतिम भाग

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बस एक कदम.... ज़किया ज़ुबैरी (3) फिर सोचती है, “शायद मैं आलसी हूं।... हां मैं हूं आलसी! ऐशो आराम की आदी हो गई हूं। मां बाप ने जैसे एक मखमल के डिब्बे में संभाल कर रखा। यहां भी कालीनों पर चलने की आदत पड़ गई है। यहां इस देश में तो बाथरूम में भी कालीन बिछा रहता है। ... क्या सच में घनश्याम ने उसके लिये कुछ ऐसा किया है जिसके लिये वह उसकी जीवन भर अहसानमन्द रहे? यह सब तो ब्रिटेन में सभी के घरों में है। फिर भी इसे लेकर घनश्याम ताने मारता रहता है। पहले तो बंदिनी