मेगा 325 - 11 - अंतिम भाग

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मेगा 325 हरीश कुमार 'अमित' (11) कुछ दिनों बाद शाम के समय शशांक अपने कमरे में बैठा टी.वी. देख रहा था. अचानक उसकी नज़र खिड़की के बाहर पड़ी तो उसे कुछ उड़ता हुआ नज़र आया. उड़ती हुई उस चीज़ का रंग-रूप हवाई जहाज़ जैसा नहीं था. यह तो कोई नई तरह की चीज़ थी. शशांक ने अपने दिमाग़ पर ज़ोर डाला. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह चीज़ क्या हो सकती है. तभी उसके दिमाग़ में आया कि यह कहीं कोई यू.एफ.ओ. (उड़नतश्तरी) तो नहीं. उड़नतश्तरियों के बारे में उसने बहुत बार पढ़ा था. टी.वी. और फिल्मों में