बहीखाता - 33

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 33 एक और हादसा इन दिनों मैंने सख़्त काम भी किया, पर साथ ही ड्राइविंग टेस्ट भी पास कर लिया और अपनी कार भी खरीद ली। अब मुझे आसपास जाने के लिए बस पकड़ने की ज़रूरत नहीं रह गई थी। कार चलाना मेरे लिए एक अच्छा अनुभव था। और सब कुछ ठीक चल रहा था, पर चंदन साहब का दोबारा फोन न आया। यदि कभी आया भी तो उसमें फिर से इकट्ठे होने की बात नहीं हुई। इधर मेरी माँ मुझ पर ज़ोर डाल रही थी कि यदि चंदन ने फोन