बहीखाता - 32

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 32 समझौता उनके एक्सीडेंट ने मुझे बहुत तंग किया। कुछ दिन तक मैं सोचती रही कि उनकी ख़बर लेने जाऊँ या न जाऊँ। मेरा आधा मन रोक रहा था और दूसरा आधा मन जाने के लिए कह रहा था। विवाह के अनुभव वाला पक्ष यह कह रहा था कि नहीं जाना चाहिए। मानवीय पक्ष कह रहा था - जाना चाहिए। आखि़र मैं उन्हें देखने अस्पताल चली गई। निरंजन सिंह ढिल्लों मेरे साथ थे। अस्पताल में चंदन साहब पट्टियों में लिपटे लेटे हुए पडे थे। टांगों और बांहों को ऊपर करके बांधा