बहीखाता - 30

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 30 हादसा कभी कभी मैं सोचती कि मेरी शख्सियत में कौन सी ऐसी कमी है कि मैं चंदन साहब को अभी तक झेले जा रही हूँ। शायद मेरे नरम स्वभाव का वह लाभ उठाते जा रहे थे। इसी स्वभाव के कारण ही वह फ्लैट पर कब्ज़ा कर गए थे। अब कभी भी उसको बेच सकते थे। मैं फिर से डिप्रैशन में रहने लगी। मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा। मैं महीने की दवा लेकर आई थी और मेरी दवा खत्म हो चुकी थी। सो, ब्लीडिंग फिर शुरू हो गई। इंडिया में यह