बहीखाता - 27

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 27 मझदार और घर-निकाला इंग्लैंड में मात्र दस दिन रहकर मैं दिल्ली लौट गई। हवाई जहाज में बैठी यही सोचती रही कि लोगों को क्या मुँह दिखाऊँगी। मित्र क्या कहेंगे। मेरी माँ, भाभी और भाई क्या सोचते होंगे। जब मैंने फोन करके भाई से कहा था कि मैं कल आ रही हूँ, एयरपोर्ट पर आकर मुझे ले जाना, वह तो तभी सुन्न हो गया था। भाई मुझे लेने आया हुआ था, पर वह चुप था। चंदन साहब के स्वभाव को वह अच्छी प्रकार जानता था, इसलिए एक भय-सा उसके चेहरे पर