हुंण तां, मैं ठीक हाँ जीवन में रिश्ते बनते नहीं और बनाए भी नहीं जाते l अनायास ही निस्वार्थ भाव से जो प्रेम पनपता है l वही सच्चा रिश्ता होता है l यह मैंने हरि, जिससे मैं कोई दो साल पहले किसी सेमिनार में मिली थी, एक सच्चे मैत्रीपूर्ण भाव को निभाने के लिए एक छोटी सी मुलाकात ही काफी होती है l अतः हरि स्वभाव से ही हँसमुख था l अभी छः माह पहले मैं जब मैं हरि से मिली थी, तब मेरे पैर में चोट लगी हुई थी l पैर में लगी चोट को देखकर हरि के मुख से