लोक डाउन कविताएं

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बंद हे दुकानें, बंद हे दफ्तरेंरोज की चहल पहल ने आज हो गई है परेपंछी उड़ रहे खुले आकाश में और जिंदगियां बंद हे चार दीवारों मेंसब लगे हे मौत को हराने मेंइंसान जो भूल गया था पैसे कमाने मेंअब जो समय ने करवट ली है आजइंसान को उसकी औकात समझा दी हे आजबसे बंद,गाडियां बंद,बंद हवाईजहाजघूमना बंद,फिरना बंद,बाहर जाना हे बंदसब बंद हे छोड़कर कुछ सेवाएं चंद मजदूरों के काम बंद हे हाथों में अब पैसे चंद हेछोड़ शहर सब गांव जा रहे हे जो लोग गाव से शहर आ रहे थे गांव की संस्कृतियों को भूल चुके थेआज सब को वह सब याद