ढीठ मुस्कुराहटें... - 1

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ढीठ मुस्कुराहटें... ज़किया ज़ुबैरी (1) “अरे भई रानी मेरी एड़ी को गुदगुदा क्यों रही हो... क्या करती हो भई... ये क्या हो रहा है... यह गीला गीला क्या है... अरे अब तो जलन भी हो रही है... उठो जागो भी, देखो क्या हो गया है..!” रानी ने अंगड़ाई लेते हुए करवट बदली और फिर से मुंह ढँक कर सो गई। सरजी बोलते रहे, बड़बड़ाते रहे... कराहते भी रहे... रानी ख़िदमत कर कर के तंग आ चुकी थी। छोटी सी बीमारी को पहाड़ बना दिया करते थे सरजी। मगर आज शायद सचमुच तकलीफ़ में थे। एक बार फिर ज़ोर से आवाज़