नई चेतना - 8

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नारायण की बातों से अमर को थोड़ी राहत महसूस हुई। वैसे ही जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो । अमर अचानक उठ खड़ा हुआ।“चलो नारायण जी ! मेनेजर के पास चलें । देर करना मुनासिब नहीं है । शायद वहीं से कुछ पता चल जाये । हमें अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए । ” नारायण से मुखातिब होते हुए अमर बोल उठा । अमर के उठते ही नारायण ने भी तत्परता दिखाते हुए तुरंत ही अपनी गन्दी सी कमीज और पतलून पहनी और निकल कर बाहर आ गया ।तख्ते नुमा दरवाजे पर छोटा सा ताला लगाने के